गुलज़ार की चयनित ३६५ कविताये
एक शख्स जिसे अपनी नज़्मों में कहानी पिरोने का हुनर आता है. वो फिल्म बनाता है तो लगता है कोई खूबसूरत सी लम्बी कविता , अपने आगोश में चित्र और उनकी आवाज़ों को बांधकर बह रही है. वो नज़्म लिखता है तो लगता है कि गर्म सेहरा को शादाब करने कोई दरिया ,अपनी ह्रदय को जलाकर, लोगो को शीतलता दे रहा है. सिनेमा और साहित्य को अपना खुदरंग लहजा देने वाले इस सफेद पैरहन वाले संत का नाम गुलज़ार है.
इन लम्बे कठिन दिनों में मैंने गुलज़ार साब की बहुत सी फिल्म देखी जिसने मेरे दरक रहे हौसलों और कच्चे कच्चे मन को ,बेहतर कल की कल्पना में पका कर कर मजबूत कर दिया. इसी बीच मेरे हाथ एक किताब लगी जिसके कदमो के पास गुलज़ार और दिल पर , ‘ ए पोयम ए डे ‘ लिखा था. गुलज़ार और पोयम ,दोनों एक दूसरे के पूरक है, गुलज़ार साब को गौर से देखो तो जीती जागती शाइस्ता ,पुरखुलूस कविता दिखाई देती है और पोयम को जिस्म दिया जाय कम -अज -कम उसका दिल , हूबहू गुलज़ार जैसा होगा.
किताब के हर वरक पर नयी कविता थी , लिखने वाले हिंदुस्तान के मुख्तलिफ शहरो के कवि , दूसरे मुल्को जैसे बांग्लादेश , श्रीलंका , नेपाल , पाकिस्तान के कवि / शायर थे। हर एक पेज , हर वरक एक पूरी दास्तान कह रहा था. ये किताब १९४७ से आज तक का ऐसा दस्तावेज़ है जिसमे हर दौर की खलिश, मोहब्बत, तकलीफे , नाउम्मीदे , हौसले और बेहतर भविष्य के मानवीय गुज़ारिश है. किताब पढ़ने के बाद लगता है आज़ादी के बाद के हर हालात को कोई सुरीला गवैया या बाउल गायक, अपनी टेर में गा रहा है
गुलज़ार साब ने खुद एक एक कविता का चयन किया है. हिंदुस्तान और पडोसी देश के २७९ कवियों की लिरिकल किस्सागोई की हर एक नज़्म , बेहद खूबसूरत है. कमाल ये भी है कि नज़्मे/ कविताये महज़ हिंदी या उर्दू में न होकर बल्कि ३४ अलग अलग ज़बानो में है। हर ज़बान की अपनी तासीर और आंच है लेकिन गुलज़ार साब ने हर नज़्म की रूह को अपनी सफ्फाक उंगलियों से सहलाकर , उसका तर्ज़ुमा ,इंग्लिश में किया है.
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गुलज़ार साब ने खुद एक एक कविता का चयन किया है. हिंदुस्तान और पडोसी देश के २७९ कवियों की लिरिकल किस्सागोई की हर एक नज़्म , बेहद खूबसूरत है. कमाल ये भी है कि नज़्मे/ कविताये महज़ हिंदी या उर्दू में न होकर बल्कि ३४ अलग अलग ज़बानो में है। हर ज़बान की अपनी तासीर और आंच है लेकिन गुलज़ार साब ने हर नज़्म की रूह को अपनी सफ्फाक उंगलियों से सहलाकर , उसका तर्ज़ुमा ,इंग्लिश में किया है.
हाइपरकोलिंस द्वारा पब्लिश की गयी ये किताब, इस साल का मेरा हासिल रही। किसी एक किताब में इतने मुख्तलिफ रंग, खुशबु , अंदाज़ , लहजा , आक्रोश, दर्द , और इश्क़ की शीरी दास्तानगोई शायद ही कभी देखने को मिले। हर कविता अपने मूल कवि के होने के बावजूद , कुछ कुछ गुलज़ार जैसी है। हर कविता की रूह में आपको गुलज़ार की विसुअल इमेजरी भी दिखेगी कविता में सिनेमा का लुत्फ़ लेना हो तो ये किताब, एक ज़रूरी दस्तावेज़ है
©अविनाश त्रिपाठी